पशुओं पर अपराध रोकने के लिए जन चेतना अभियान और आन्दोलन (भारत) ने मुहिम चलाई .
देशभर के पशु-पक्षी प्रेमियों को अभियान से जुड़ने के लिए अपील
हाईलाइटस :
# पशु क्रूरता निवारण के लिए जिला स्तर की समितियों का गठन सिर्फ कागजी है,
# सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी राज्य सरकारों की लापरवाही जारी,
# छुट्टा पशुओं की बढती तस्करी के लिए पशु मालिक ज़िम्मेदार -स्थिति बेहद दुःखद
पटना (बिहार)
जन चेतना अभियान और आन्दोलन-मास अवेयरनेस कैंपेन एंड मोमेंट(जेसीएएए),भारत मनुष्यों द्वारा स्वार्थ सिद्धि के बाद लाचार, विवश, भूखे-प्यासे और असहाय कर दिये गये जरुरतमंद पशु-पक्षियों के सहायतार्थ सेवारत संस्था है जिसने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से पशुओं पर होने वाले अपराध एवं क्रूरता के संदर्भ में देश के पशु प्रेमियों से समस्या और समाधान के लिए सुझाव माँगा है. जन चेतना अभियान और आन्दोलन का बहुत बड़ा विश्वास है कि पशु-पक्षियों के कल्याणार्थ सहयोग एवं सुझाव भारी मात्रा में प्राप्त होगा. विज्ञप्ति में यह बताया गया है कि तस्करों द्वारा राजस्थान के राज्य पशु और धरोहर -"ऊँटों" की धड़ल्ले से हो रही अवैध तस्करी, जो राजस्थान से उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम राज्य के रास्ते, बांग्लादेश अवैध रूप से कत्ल खाने को भेजा जाता है. इस दिशा में जन चेतना अभियान और आन्दोलन विगत् 5 वर्षों से उनकी प्राण रक्षा हेतु प्रयासरत है. जिसके तहत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में स्थानीय नागरिकों और अन्य राज्यों के स्वयंसेवकों, संस्थाओं के सहयोग से 500 से भी अधिक ऊँटों को उनके घर राजस्थान वापस पहुँचाया है.
इस
समय जन चेतना अभियान और आन्दोलन स्थानीय प्रशासन के सहयोग से पूरे देश मे गौशाला तथा आश्रय-स्थल स्थापित करने के लिए कृतसंकल्पित है. जन चेतना अभियान ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के अंतर्गत संपूर्ण राष्ट्र में जिला स्तर पर पशु क्रूरता निवारण समिति या सोसायटी फॉर प्रीवेंशन आॅफ क्रुएलिटी टू एनिमल्स ("एसपीसीए") का निर्माण कर पशु क्रूरता को रोकने और उनके कल्याणार्थ कार्य करने को जिम्मेदार ठहराया गया है. इस जनपदीय जिम्मेदारी को निभाने के लिए जिलाधिकारी-अध्यक्ष, उपाध्यक्ष -पुलिस अधीक्षक और सचिव- जिला पशुपालन पदाधिकारी की तैनाती की जानी है साथ ही स्थानीय प्रशासन के महत्वपूर्ण विभाग जैसे- नगर निगम, नगर परिषद, स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता आदि को भी सम्मिलित कर समिति बना कर कार्य करना चाहिए.
जनचेतना अभियान और आन्दोलन ने खेद व्यक्त करते हुए बताया कि जीव जन्तु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के संशोधित अधिनियमन वर्ष 2001 से आज 2019 तक पूरे देश में सिर्फ कागजों में यह समिति बनी हुई है. अभी तक जमीनी स्तर पर कार्य करने की सफलता कहीं नजर नहीं आ रही है. इस दिशा में राज्य सरकारों को राज्य जीव जन्तु कल्याण बोर्ड की स्थापना और संचालन का भी जिम्मेदारी सौंपा गया है ताकि जिला स्तर की जीव जन्तु क्रूरता निवारण समितियाँ ढंग से संचालित की जा सके. यह कार्य भी राज्य सरकारों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है. प्राप्त सूचनाओं के अनुसार उत्तराखंड जीव जंतु कल्याण बोर्ड एवं झारखंड जीव जन्तु कल्याण बोर्ड के अलावा देश के किसी भी राज्य में राज्य स्तरीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड किसी भी प्रकार की गतिविधि संचालित नहीं कर रहा है. जन चेतना अभियान और आन्दोलन इस नकारात्मक रवैया को सुधारने के लिए पुरजोर कोशिश में जुट गया है.
जन चेतना अभियान और आन्दोलन की ओर से यह भी बताया गया कि कई वर्षों से जन चेतना अभियान और आन्दोलन पशुओं के कल्याणार्थ और क्रूरता के विरुद्ध संवैधानिक आवाज उठाते आ रहे हैं और संस्था ने यह पाया कि पशु जब तस्करों से पकड़े जाते हैं जो ट्रकों में भर कर या पैदल रास्ते से भारत-बांग्लादेश सीमा पार कराए जाते हैं और जब कभी पशु प्रेमियों द्वारा या सरकारी तंत्र के माध्यम से असंवैधानिक यातायात या अपराध के तहत पकड़े जाते हैं तो उस परिस्थिति में पकड़े गए पशु-पक्षियों को रखने तथा उनके चारा-पानी की व्यवस्था करना मुश्किल हो जाता है जो रेस्क्यू कार्य की एक बहुत बड़ी अड़चन है. इन परिस्थितियों में कोई भी संस्था बचाए गए पशुधन की जिम्मेदारी लेने के लिए आगे नहीं आना चाहती है जिसका नतीजा यह होता है कि वे पशु फिर क्रूरता के जाल में फँस जाते हैं और वह अवैधानिक तरीके से सीधे कत्लखाने पहुंचते हैं. अब सवाल इस बात का है कि इस रोजाना की दुर्दशा और पशुओं पर होने वाले अपराध का मुख्य जिम्मेदार कौन है और इसे कैसे रोका जाए ? यह कि इतने बड़े स्तर पर पशुपालक अपने पशुओं को सड़कों पर असहाय छोड़ रहे हैं. क्या किसी संस्था के द्वारा इन पशुओं का देखभाल संभव है ? यह बता दें कि जीव जंतु कुरता निवारण अधिनियम 1960 में पशु मालिक की जिम्मेदारी सुनिश्चित की गई है. क्या विडंबना है नगरीय क्षेत्रों में पशुओं को छुट्टा छोड़ने वाले को अपराधी सिद्ध कर लेते हैं लेकिन देहाती इलाकों में किसी भी पशु अधिनियम का प्रतिपादन अभी कोसों दूर है- जिसका मुख्य कारण है स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता एवं लापरवाही.
जन चेतना अभियान और आन्दोलन के कार्यकारी अध्यक्ष, संस्थापक स्वयंसेवक सुजीत चौधरी'विगन' ने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि निजी अथवा संस्थागत तौर पर काम करने वाली संस्थाएँ निसहाय एवं विफल है. अन्य कई संस्थाएँ जैसे- गौशाला, पिंजरापोल और गोसदन के अतिरिक्त आश्रय-स्थल का निर्माण करवा कर भी समस्या का निदान नहीं हो पा रहा है. इस चुनौतीपूर्ण परिस्थिति से निपटने के लिए जन चेतना अभियान और आन्दोलन ने निर्णय लिया है कि पशु पालकों और किसानों को जागृत किया जाएगा और उनसे अनुरोध किया जाएगा कि वह अपने पशुओं को गैरकानूनी तौर पर खुले में असहाय कर नहीं छोड़ें. जीव जन्तु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत पशु मालिकों द्वारा खुले में छोड़ने पर अपराधिक मुकदमा दायर किया जा सकता है. तस्करी के पकड़े गए पशु पक्षियों की प्राण रक्षा हेतु न्यायालय मे गुहार लगाने पर भी भारी मात्रा में पशु कत्लखाना जा रहे हैं. असहाय पशु-पक्षियों के लिए चारा-पानी, आश्रय स्थल, चिकित्सा या पुनर्वास हेतु सुविधा उपलब्ध करवाने में कुछ संस्थाएं आंशिक सफलता प्राप्त की है जो अपर्याप्त है. जन चेतना अभियान और आन्दोलन का अब प्रयास यह है कि देशभर के जो ब्लॉक स्तरीय सरकारी पशु चिकित्सालय अपनी जिम्मेदारियों नहीं निभा रहे हैं को जागृत करें. देशभर के पशुपालन निदेशक जो भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड भारत सरकार के द्वारा संचालित पशु कल्याण मामलों के नोडल ऑफिसर होते हैं वह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के उपरांत भी राज्य पशु कल्याण बोर्ड की स्थापना एवं संचालन में लापरवाही बरत रहे हैं. स्थिति यह है कि कुछ राज्यों को छोड़कर, देश के किसी राज्य में राज्य जीव जंतु कल्याण बोर्ड क्रियाशील नहीं है। जिसका नतीजा आज यह है कि देशभर में पशु क्रूरता एवं उन पर होने वाले अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं.
जन चेतना अभियान और आन्दोलन की कोशिश है कि स्थानीय प्रशासन के संबंधित विभाग जैसे पशुपालन विभाग, जिलाधिकारी, पशुपालन अधिकारी और स्थानीय सरकार को भी कर्तव्य बोध करा कर एसपीसीए के अंतर्गत पशुओं को आश्रय-स्थल, गौशाला में चिकित्सा और चारा-पानी हेतु उनकी जिम्मेदारी का भान कराएं और और जिले स्तर की जीव जंतु क्रूरता निवारण समितियों- एसपीसीए को जागृत करें ताकि वह पशु क्रूरता निवारण एवं पशु कल्याण कार्यक्रम को सफल बना सकें. सीमावर्ती इलाकों में पशु तस्करी जोरों पर है जिसका नेटवर्क पूरे देश में फैला हुआ है और और-रोक टोक पशु तस्करी से खेती किसानी के पशुधन अवैधानिक क़त्ल खानों के शिकार हो रहे हैं. इस विनाश लीला से देश के सांस्कृतिक, आर्थिक एवं प्राकृतिक धरोहर बहुत बड़े खतरे की ओर बढ़ रहा है.इस मुद्दे को नजर रखते हुए जन चेतना अभियान और आन्दोलन बिना किसी सरकारी साधन-सुविधा के यह है निर्णय लिया है कि देश के पशुओं के कल्याण के लिए इस अभियान को बेहद प्रभावशाली ढंग जन जागरण करेगा और स्थानीय प्रशासन को जग आएगा. देश के समस्त पशु प्रेमियों से इस आन्दोलन से जुड़ने का अपील किया है.जन चेतना अभियान और आन्दोलन का संपर्क सूत्र है : सुजीत चौधरी'विगन', कार्यकारी अध्यक्ष, जन चेतना अभियान और आंदोलन (भारत) एवं मानद् राज्य पशु कल्याण अधिकारी, भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार; ईमेल- janchetna4us@gmail.com/ awbi.hsawo.sujeet@gmail.com ; वेबसाइट: www.janchetna.org.in ; हेल्प लाइन(24x7): +91-9470251718 /+91-8210370082 )
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